गज़ल
हाथ मे फिर से आज जाम आया
गमे मैफ़िल मे तेरा नाम आया
दो कदम ही तो और चलना था
बस तेरा ख़्वाब था जो काम आया
मुझको इस तर्हा उसने कत्ल किया
मेरे ही सर मेरा इल्जाम आया
आँस थी टुँटी तेरी गलियोकी
आँखरी वक्त क्युँ पयाम आया?
बडी मुश्कील से आँसु रोंके थे
और वो दर पे तिश्नाकाम आया
जब लगा साथ चल सकेंगे हम
अगले पल आखरी मुकाम आया
ऐसा अंजामे-वफा मुझको मिला
वो मुझे बेचने बज़ार सरे-आम आया
10 comments:
Are ekdum sahi hnn....
one thing i wud like to ask u...itni dard bhari poems ya gajal kyun hai aapki...
anyways i enjoyed it...
keep posting...:)))
वा वा... क्या बात है.... जियो!
Kopri naka yadgar ban gaya 26/12/2006 like a 31st celebration aur apne uspe gazal bhi kar di!!!
wah miya wah!!!!
this one is DHASU yar .... .
agadi FOD-FAD ahe re...
eekdm badhiyaaaaa !!!
jhakaas re .
vaah! kyaa baat hai!!
मुझको इस तर्हा उसने कत्ल किया
मेरे ही सर मेरा इल्जाम आया
वा!!! झकास!!
एकदोन शंका आहेत, (असायच्याच!!) :)
मेल करते रे.
अरे, तिश्नाकामचा अर्थ माहीत नव्हता त्यामुळे त्या शेरची मजा कळली नव्हती. आत्ता शोधला. मस्तच!!!
मलापण नव्हता माहीत अर्थ "तिश्नाकामचा " :D
सो गझल कळुन प्रतीक्रिया द्यायला २ दिवस लागले
काय करणार जरा कमी पडतय dnyaan,
पण वाचायची गोडी लागत चाललीये
मस्तच रे:)
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